प्रतीक्षा में

मैं देखती रही बाट उस पल की,

कि तुम आओगे और दो पल ही सही

मेरे साथ बिताओगे.

कुछ मेरी सुनोगे कुछ अपनी सुनाओगे,

मेरे बिना कहे ही भांप लोगे,

मेरी आंखों के गिर्द स्याह घेरों को, और

मेरे बालों पर उभर आई श्वेत रेखाओं को.

मैं देखती रही बाट उस पल की

कि तुम आओगे पवन रथ पर सवार,

सुगंध का एक झोंका बन

हाथों में मोतिया की वेणियां लिए,

सजाने मेरे बालों में.

मैं देखती रही बाट

कि तुम आओगे बूंदों से भरे मेघ बन

और भिगो जाओगे मुझे अंतर्मन तक,

मैं सराबोर हो उमंगों से

खिल उठूंगी धरती पर पीली सरसों बन.

मैं देखती ही रही बाट मगर,

न तुम आए, न पवनरथ आया.

आया तो बस, एक संदेश

‘अब तुम मेरी बाट न देखना

मुझ से कोई प्रश्न न करना,

पीछे छूट गए जो रिश्ते

उन को फिर आवाज न देना.’

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